IISER Logo
The OPAC site is under construction.
Amazon cover image
Image from Amazon.com

कविता के नए प्रतिमान

Kavita ke naye pratiman

By: Material type: TextTextLanguage: Hindi Publication details: New Delhi : Rajkamal Prakashan, 2023.Edition: 17th edDescription: 251p. : hb. ; 22cmISBN:
  • 9788126707447
Subject(s): DDC classification:
  • 891.431 SIN 23rd
Summary: कविता के नए प्रतिमान में समकालीन हिंदी आलोचना के अंतर्गत व्याप्त मूल्यांध वातावरण का विश्लेषण करते हुए उन काव्यमूल्यों को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है जो आज की स्थिति के लिए प्रासंगिक हैं। प्रथम खंड के अंतर्गत विशेषतः ‘तारसप्तक’, ‘कामायनी’, ‘उर्वशी’ आदि कृतियों और सामान्यतः छायावादोत्तर कविता की उपलब्धियों को लेकर पिछले दो दशकों में जो विवाद हुए हैं उनमें टकरानेवाले मूल्यों की पड़ताल की गई है; और इस प्रसंग में नए दावे के साथ प्रस्तुत ‘रस सिद्धांत’ की प्रसंगानुकूलता पर भी विचार किया गया है। दूसरे खंड में ‘कविता के नए प्रतिमान’ के नाम पर प्रस्तुत अनुभूति की ‘प्रामाणिकता’, ‘ईमानदारी’, ‘जटिलता’, ‘द्वंद्व’, ‘तनाव’, ‘विसंगति’, ‘विडंबना’, ‘सर्जनात्मक भाषा’, ‘बिंबात्मकता’, ‘सपाटबयानी’, ‘फैंटेसी’, ‘नाटकीयता’ आदि आलोचनात्मक पदों की सार्थकता का परीक्षण किया गया है। इस प्रक्रिया में यथाप्रसंग कुछ कविताओं की संक्षिप्त अर्थमीमांसा भी की गई है, जिनसे लेखक द्वारा समर्थित काव्य-मूल्यों की प्रतीति होती है। निष्कर्ष स्वरूप नए प्रतिमान एक जगह सूत्रबद्ध नहीं हैं, क्योंकि लेखक इस प्रकार के रूढ़ि-निर्माण को अनुपयोगी ही नहीं बल्कि घातक समझता है। मुख्य बल काव्यार्थ ग्रहण की उस प्रक्रिया पर है जो अनुभव के खुलेपन के बावजूद सही अर्थमीमांसा के द्वारा मूल्यबोध के विकास में सहायक होती है।
Tags from this library: No tags from this library for this title. Log in to add tags.
Star ratings
    Average rating: 0.0 (0 votes)
Holdings
Item type Current library Call number Status Date due Barcode
Books Books Vigyanpuri Campus 891.431 SIN (Browse shelf(Opens below)) Available 007110

कविता के नए प्रतिमान में समकालीन हिंदी आलोचना के अंतर्गत व्याप्त मूल्यांध वातावरण का विश्लेषण करते हुए उन काव्यमूल्यों को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है जो आज की स्थिति के लिए प्रासंगिक हैं। प्रथम खंड के अंतर्गत विशेषतः ‘तारसप्तक’, ‘कामायनी’, ‘उर्वशी’ आदि कृतियों और सामान्यतः छायावादोत्तर कविता की उपलब्धियों को लेकर पिछले दो दशकों में जो विवाद हुए हैं उनमें टकरानेवाले मूल्यों की पड़ताल की गई है; और इस प्रसंग में नए दावे के साथ प्रस्तुत ‘रस सिद्धांत’ की प्रसंगानुकूलता पर भी विचार किया गया है। दूसरे खंड में ‘कविता के नए प्रतिमान’ के नाम पर प्रस्तुत अनुभूति की ‘प्रामाणिकता’, ‘ईमानदारी’, ‘जटिलता’, ‘द्वंद्व’, ‘तनाव’, ‘विसंगति’, ‘विडंबना’, ‘सर्जनात्मक भाषा’, ‘बिंबात्मकता’, ‘सपाटबयानी’, ‘फैंटेसी’, ‘नाटकीयता’ आदि आलोचनात्मक पदों की सार्थकता का परीक्षण किया गया है। इस प्रक्रिया में यथाप्रसंग कुछ कविताओं की संक्षिप्त अर्थमीमांसा भी की गई है, जिनसे लेखक द्वारा समर्थित काव्य-मूल्यों की प्रतीति होती है। निष्कर्ष स्वरूप नए प्रतिमान एक जगह सूत्रबद्ध नहीं हैं, क्योंकि लेखक इस प्रकार के रूढ़ि-निर्माण को अनुपयोगी ही नहीं बल्कि घातक समझता है। मुख्य बल काव्यार्थ ग्रहण की उस प्रक्रिया पर है जो अनुभव के खुलेपन के बावजूद सही अर्थमीमांसा के द्वारा मूल्यबोध के विकास में सहायक होती है।

There are no comments on this title.

to post a comment.