Item type | Current library | Call number | Status | Barcode | |
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Vigyanpuri Campus | 923 VAL (Browse shelf(Opens below)) | Available | 006953 |
‘जूठन’ ओमप्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा है ! इसका पहला भाग बरसों पहले प्रकाशित होकर, आज हिंदी दलित साहित्य और खासकर आत्मकथाओं की श्रृंखला में एक विशेष स्थान प्राप्त कर चूका है ! वाल्मीकि जी अब हमारे बीच नहीं है, अपने जीवन-काल में उन्होंने ‘जूठन’ के बाद साहित्य, समाज और संवेदना के दायरों में एक लम्बी यात्रा पूरी की ! कई कथात्मक और आलोचनात्मक कृतियों के साथ उनके काव्य-संग्रह भी आए ! ‘जूठन’ का यह दूसरा भाग उनके उसी दौर का आख्यान है ! आत्मकथा के इस दूसरे भाग की शुरुआत उन्होंने देहरादून की ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में अपनी नियुक्ति से की है ! नई जगह पर अपनी पहचान को लेकर आई समस्याओं के साथ-साथ यहाँ मजदूरों के साथ जुडी अपनी गतिविधियों का जिक्र करते हुए उन्होंने अपनी साहित्यिक सक्रियता का भी विस्तार से उल्लेख किया है ! सहज, प्रवाहपूर्ण और आत्मीय भाषा में लिखी गई यह पुस्तक देहरादून से जबलपुर और वहां से पुनः देहरादून की यात्रा करती हुई शिमला उच्च अध्ययन संस्थान और फिर उनके अस्वस्थ होने तक जाती है ! दलित साहित्य के वर्तमान परिदृश्य में ‘जूठन’ के इस दूसरे भाग को पढना एक अलग अनुभव ह|
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